समय के साथ म्यूजिक भी बदल गया : अल्का याग्निक

ALKA-YAGNIK- (PIC FROM WV)
हाल ही में सोनी टीवी पर प्रसारित होने वाले सिंगिंग रियलिटी शो ‘सुपरस्टार सिंगर’ में देश के कई हुनरदार बच्चे ने बेस्ट परफोमेंस दे रहे हैं। इसके अलावा भी देश में तमाम बच्चें कई सिंगिंग कार्यक्रमों में हिस्सा लेकर अपने भविष्य बनाने का सपना देख रहे हैं। लेकिन मन में प्रश्न यही है कि आखिर कितने बच्चों का भविष्य बनता है? क्या सभी अपनी राह तक पहुचं जाते है। ऐसे ही कुछ मुद्दों को लेकर देश की सुपरस्टार सिंगर की जज व बॉलीवुड़ में लबें से अपनी आवाज का जादू बिखेर रही अल्का याग्निक से योगेश कुमार सोनी की खास बातचीत की मुख्य अंश…
क्या अब रियलिटी शो ही भविष्य बनाने का माध्यम बन चुके हैं?
ऐसा नही है। कला कहां दबके रहती है। हमारे या और पुरानी पीढ़ी के पास ऐसा कोई विकल्प नही होता था और एक से बढकर एक सिंगर निकलकर आए। चूंकि अब जमाना बदल गया और टीवी शो का प्रचलन है तो नए गायकों खासतौर बच्चों को अच्छा प्लेटफार्म मिलने लगा। गायक तो कहीं भी गाकर अपने दीवाने बना सकता है। हाल ही में रानू मंडल इस शताब्दी का सबसे बड़ा उदाहरण बनी। रेलवे स्टेशन पर पेटभर खाने के लिए गाती थी लेकिन आज वो अपने हुनर के दम पर बॉलीवुड़ सिंगर बन चुकी हैं।
सिंगिंग के क्षेत्र में तमाम बच्चे अपना करियर बनाने के लिए प्रोग्राम में आते हैं और सिर्फ एक,दो या तीन बच्चों ही स्थान प्राप्त कर पाते हैं जिनको आगे मौका भी मिल जाता है। बाकी बच्चे क्या महसूस करते हैं?
कंम्पिटिशन हर क्षेत्र में होता है। हमारे पास आने वाले सभी बच्चे अच्छा गाते हैं लेकिन पहला स्थान तो एक ही को प्राप्त होता है। हमारे जमाने में शिक्षा के शिक्षा के क्षेत्र में यदि किसी बच्चे के साठ प्रतिशत नंबर आ जाते थे तो बहुत होशियार माना जाता था चूंकि उस समय इतने नबंर आना बड़ा बात मानी जाती थी। लेकिन आज की पीढ़ी में टैलेंट कूट-कूट कर भरा हुआ है अब किसी बच्चे के 99 प्रतिशत भी आ जाए तो वह खुश नही होता क्योंकि सौ प्रतिशत वालों की कमी नही। यह प्रक्रिया सिंगिंग के क्षेत्र में देखी जाने लगी। बच्चे इतना अच्छा गाते हैं कि हम ही परेशान हो जाते हैं कि कैसे चुनाव करें लेकिन किसी को तो प्रथम स्थान देना होता है जो बेहतर करता है।
बॉलीवुड मे काम कर रही युवा पीढ़ी की गानों को लेकर उच्चारणविधी मे वो मजबूती व शब्दों मे उतनी पकड़ नही जितनी पुराने जमाने के गायकों मे होती थी।
समय के साथ चीजें बदलने लगी। अब लोगों को सबकुछ शॉटकट चाहिए। आजकल की युवा पीढ़ी ने किसी भी भाषा को लिखने व बोलने के अंदाज के तरीके को पूरी तरह ही बदल दिया जिस वजह से उनका गाने भी शॉटकट में पसंद आने लगे। यदि आज शब्दों को ज्यादा तरीके या मजबूती से बोला जाएगा तो युवा दर्शक गानों को पसंद नही करेगा। उदाहरण के तौर पर ‘ग़लती’ शब्द की उच्चारणविधि बहुत सुन्दर तरीके से की जा सकती है लेकिन लोग इस शब्द को ‘गल्ती’ बोलते है।हालांकि ये बेहद दुर्भाग्यपूर्ण बात है। शॉटकट मैसेज लिखते-लिखते अब युवाओं ने बालने मे भी यह प्रक्रिया अपने ऊपर लागू कर ली। शब्दों के लेकर इससे होने वाले नुकसान आगे और भी ज्यादा हो सकते है।
आजकल गानों को मुखड़े बिल्कुल भी नही जुड़ते फिर भी वो हिट हो रहे हैं।
सही कहा। जैसा कि मैंने पहले भी बताया कि अब लोगों को शब्दों के अर्थ से मतलब नही होता अब तो म्यूजिक के दम पर ही गाना खिचनें लगा। अक्सर दुकानों पर बोर्ड लगा होता है न कि ‘फैशन के इस दौर में गारंटी की इच्छा न करें’इसी तर्ज पर आज के म्जूजिक के दौर में गाने मुखडे जुडे होने की अपेक्षा न करें।
पुराने गाने आज भी लोग गुनगुनाते हैं लेकिन अब गानों की लाइफ बिल्कुल ही खत्म हो गई। ऐसा क्यों?
अब दुनिया इतनी तेज भाग रही है कि हर लोग उस समय ही उस चीज को याद रखते हैं जब तक वो उनके सामने हों। पहले जमाने में पिक्चरें कम बनती थी और जो लोग उस किरदार में घुस जाते थे। हीरो की तरह कपड़े पहनना,बाल कटवाना व अन्य सभी स्टाइल को कॉपी किया जाता था और एक फिल्म को लोग न जाने कितनी बार देखते थे लेकिन अब सब कुछ इसके विपरित हो गया। इसके अलावा पहले एक गाने को सुनने के लिए लोग रेडियों या टीवी पर उसका इंतजार किया करते थे लेकिन अब किसी को कोई गाना पसंद आ जाए तो वह इंटरनेट की इस दुनिया में उसको एक ही हफ्ते या दिन में इतनी बार सुन लेते हैं कि वह उससे बहुत जल्दी बोर हो जाता है इसलिए अब न फिल्म की लाइफ होती है और न गाने की।
TEXT- WV